Musafa Karne Ki Dua: इस्लाम में जब भी हम किसी से मिलते हैं तो एक-दूसरे को सलाम करते हैं और फिर अक्सर हाथ मिलाकर मुसाफा करके मोहब्बत और भाईचारे का इज़हार करते हैं।
मुसाफा करना सिर्फ दोस्ती और अपनापन बढ़ाने का ज़रिया नहीं है बल्कि यह एक सुन्नत अमल भी है। जब दो मुसलमान आपस में मिलकर मुसाफा करते हैं तो उनके गुनाह भी झड़ जाते हैं और दिलों में मोहब्बत पैदा होती है।
इसीलिए आज यहां पर हम मुसाफा करने की दुआ को आसान लफ्ज़ों में बता रहे हैं, ताकि आप में से हर कोई इसे याद कर सके और अमल में ला सके।
Musafa Karne Ki Dua
मुसाफा करना सिर्फ एक कल्चर या आदत नहीं बल्कि इस्लाम की खूबसूरत सुन्नत है। इसलिए जब भी आप मुसाफा करें तो यह दुआ पढ़ें:

Musafa Karne Ki Dua In Hindi
यग़फिरुल्लाहु लहु लना वलकुम
Musafa Karne Ki Dua In English
Yaghfirullahu lana wa lakum
Musafa Karne Ki Dua In Arabic
يَغْفِرُ ٱللَّهُ لَنَا وَلَكُمْ
Musafa Karne Ki Dua Ka Tarjuma
अल्लाह हमें और आपको माफ़ करे
Musafa Karne Ki Fazilat
मुसाफा करने और दुआ पढ़ने के बहुत से फायदे हैं, जिनमें से कुछ ये हैं:
- गुनाह माफ होते हैं – हदीस के मुताबिक मुसाफा करने से गुनाह गिर जाते हैं।
- भाईचारा बढ़ता है – दिलों में मोहब्बत और अपनापन पैदा होता है।
- सुन्नत का अज्र मिलता है – मुसाफा करना एक सुन्नत अमल है।
- बरकत और रहमत – जब दुआ के साथ मुसाफा किया जाए तो अल्लाह की रहमत बरसती है।
- नफरत दूर होती है – दिल से बुराई और ग़लतफहमी खत्म होती है।
Musafa Karne Ka Sahi Tareeqa
मुसाफा करने का तरीका बहुत आसान है:
- सबसे पहले अस्सलामु अलैकुम कहें।
- सामने वाला वअलैकुम अस्सलाम कहे।
- इसके बाद हाथ मिलाएं दोनों हाथ से करना बेहतर है।
- दिल से मोहब्बत के साथ यह दुआ पढ़ें:
“यग़फिरुल्लाहु लना वलकुम” - चाहें तो हल्का सा गले भी मिल सकते हैं।
FAQs
मुसाफा करना सुन्नत है या फर्ज़?
मुसाफा करना सुन्नत है, यानी करना बेहतर है लेकिन फर्ज़ नहीं।
क्या औरतें भी मुसाफा कर सकती हैं?
जी हां, औरतें अपनी औरत सहेलियों या रिश्तेदारों से मुसाफा कर सकती हैं।
मुसाफा करने की दुआ कौन सी है?
“यग़फिरुल्लाहु लना व ल कुम” ही मुसाफा करने की दुआ है।
क्या हर बार मुसाफा करते वक्त दुआ ज़रूरी है?
हां, पढ़ना अफज़ल है। अगर भूल जाएं तो भी मुसाफा करना सुन्नत है।
आख़िरी बातें
हमने यहां पर मुसाफा करने की दुआ को हिंदी, इंग्लिश और अरबी में आसान अल्फ़ाज़ के साथ बताया था जिसे आप आसानी से पढ़ कर समझ जाएं।
जब भी आप किसी मुसलमान भाई से मिलें तो सलाम करें, मुसाफा करें और यह दुआ पढ़ें। इससे मोहब्बत, भाईचारा और बरकत बढ़ेगी और अल्लाह आपको भी अज्र देगा।